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इन्तजार —

Judate Akshar
Judate Akshar
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झिमिर झिमिर बरसात अक्सर ही उसे उस लड़के की याद दिलाती थी । हाँ उसी दूकान के नीचे खड़ा घण्टो इन्तजार किया करता था वो ऋचा की एक झलक पाने को । शुरुवात की झुंझलाहट कब आदत में बदल गयी कहाँ जान पाई थी वो । दो दिन नही आया था वो तो परेशान सी छज्जे पे घूमती रही थी वो । आज अचानक खड़ा देख सोचा न विचारा जा पहुंची थी उसके पास । “कहाँ थे दो दिन ..?”

उसके पूछने पर वो लड़का मुस्कुरा दिया। झेंप सी गयी थी ऋचा । धीरे धीरे इस सिलसिले ने पहले प्रेम फिर विवाह का जामा पहन लिया ।

अचानक ढुलक आये अश्रुओं को पोंछते हुए मन ही मन कह उठी थी वो ‘अब कभी भी मेरा इंतजार खत्म नही होगा ।’ ‘आ जाओ न एक बार फिर प्लीज्… ‘

“मैं आ गया…” चोंक उठी ऋचा । नन्हा राहुल सामने खड़ा था हुबहू पिता के नाक नक्श  ।

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